56 वर्षों में भी डुब्लु स्कूल मूलभूत सुविधाओं से वंचित, प्रधानाचार्य सहित सात पद रिक्त…

HNN / शिमला

 अपने अस्तित्व के 56 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी सीनियर सेकेंडरी स्कूल डुब्लु में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है जिसके चलते इस क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने में काफी परेशानी पेश आ रही है। स्कूल में प्रधानाचार्य सहित विभिन्न श्रेणियों के सात पद रिक्त पड़े हैं। प्रिंसीपल का पद रिक्त होने के कारण प्रशासनिक कार्यो का निष्पादन  सही परिप्रेक्ष्य में नहीं हो पा रहा है।  मिनिस्ट्रीयल स्टाफ के अधीक्षक व दो क्लर्क सहित तीनों पद वर्षों से खाली चल रहे है।

कार्यालय का काम शिक्षकों से लिया जा रहा है। जिससे स्कूल में शैक्षणिक कार्य में व्यवधान पड़ रहा है। इसके अलावा टीजीटी, साईंस व मेडिकल तथा शारीरिक अध्यापक के भी पद खाली पड़े हैं। बता दें कि सिरमौर जिला की सीमा के साथ लगती मशोबरा ब्लॉक की अंतिम पंचायत बलोग है जिसके डुब्लु गांव में 1965 में मिडल स्कूल खोला गया था जिसे सरकार ने 1985 में अपग्रेड करके उच्च और 2007 में सीनियर सेकेंडरी स्कूल बनाया गया था।  बीते कुछ वर्षों से स्कूल के पुराने भवन के ढांचा को असुरक्षित घोषित  किया गया था जिसे आज तक नहीं गिराया गया है।

जिस कारण साईंस ब्लॉक इत्यादि भवन नहीं बन सके है। विज्ञान विषय में रूचि रखने वाले विद्यार्थियों को जुन्गा,  चायल  अथवा सोलन जिला के गौड़ा स्कूल जाना पड़ता है। वर्ष 2012 में स्कूल के नए भवन का लोकापर्ण तत्कालीन भाजपा सरकार के सीएम प्रेम कुमार धूमल ने किया था परंतु इस भवन में साईंस ब्लॉक इत्यादि का कोई प्रावधान नहीं किया गया था। किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप तंवर ने स्कूल की दयनीय हालत पर खेद प्रकट किया है। बताया कि आजादी के 74 वर्ष पूर्ण होने पर भी कसुंपटी विधान सभा क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेय जल व सड़कों की हालत सबसे खस्ता है।

इनका कहना है कि बीते 20 वर्षों से इस क्षेत्र में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व है परंतु जन समस्याओं की ओर किसी भी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया गया जिस कारण प्रदेश में  कसुंपटी निर्वाचन क्षेत्र सबसे पिछड़ा माना जाता है। स्कूलों में बेहतरीन सुविधाएं न होने के कारण इस क्षेत्र के बच्चे किसी उच्च पद पर नहीं पहूंच पाते हैं। उन्होने सरकार से मांग की है कि डुब्लु स्कूल में सभी मूल भूत सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाए अन्यथा उन्हें आन्दोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।


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